आदमी की उम्र जब हो जाती है साठ
जिन्दगी पढ़ाती है उसे एक नया पाठ
कल तक था जिनका साथ
छूटने लगता है आज उनका हाथ
आदमी जब हो जाता है साठ का
सुनाने का बहुत रहता है उसके पास
पर सुनने को नही रहता कोई पास
एक लम्बी उम्रका घटा जमा
पीढ़ी की दरार में जाता है समा
उम्र के पठार पर खड़ा है
साठ की उम्र का आदमी
अपनी तृप्त अतृप्त इच्छाओं के
साथ है साठ का आदमी
ऑखों में अब नींद है न सपनें
बेगाने हो गए सारे अपनें
आदमी जब साठ का होता है
रह जाता है बस थोड़ा टहलना
और थोड़ी बड़बड़ाहट।
जिन्दगी पढ़ाती है उसे एक नया पाठ
कल तक था जिनका साथ
छूटने लगता है आज उनका हाथ
आदमी जब हो जाता है साठ का
सुनाने का बहुत रहता है उसके पास
पर सुनने को नही रहता कोई पास
एक लम्बी उम्रका घटा जमा
पीढ़ी की दरार में जाता है समा
उम्र के पठार पर खड़ा है
साठ की उम्र का आदमी
अपनी तृप्त अतृप्त इच्छाओं के
साथ है साठ का आदमी
ऑखों में अब नींद है न सपनें
बेगाने हो गए सारे अपनें
आदमी जब साठ का होता है
रह जाता है बस थोड़ा टहलना
और थोड़ी बड़बड़ाहट।